Monday 20 August 2012

भिखारी

मैं भिखारी हूँ
भीख मांगता हूँ -
मोहब्बत की, अपनेपन की, सुकून की ,
और इस दुनिया को चलाने वाला वो ईश्वर
बड़ा दयावान है
ऐसा नही कि भीख भी न दे
देता है
पर - वह नहीं जो मैं माँगू
बल्कि वह जो ये चाहें !
जैसे - दर्द, दर्द, दर्द
मेरी हथेलियाँ दर्द से भर गई हैं
इसलिए भीख में मिले इस दर्द को 
मै रखता हूँ अपने दिल में 
क्योंकि दिल में अभी बहुत जगह खाली है 
दुनियां के लिए 
बहुत से दर्द समेट सकता हूँ अभी 
मुझे प्यार है दर्द से 
जैसे कोई पागल 
भीख में मिले 
खोटे सिक्कों से प्यार कर बैठे - 
मेरा दिल दर्द से कभी न भरेगा 
मैं कभी तृप्त न होऊंगा 
क्योंकि कहते हैं मैं भिखारी हूँ !

4 comments:

  1. बहुत सुंदरता से तुलना कि है मामाजी बहुत सुन्दर

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  2. दर्द तो बिन मांगे ही मिल जाता है. और फिर दर्द देने वाला जरूरी नहीं कि बेदर्द हो.

    लाजवाब अभिव्यक्ति

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