Monday 13 August 2012

गज़ल

न पूछ किस कदर ये आँख तरसी है 
जाने किन-किन तमन्नाओं की आज बरसी है. 

दिल की जलन को मिलती नहीं राहत
अब तो रातें भी दोपहर सी है.

गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे 
तपती ज़मी पे आग बरसी है.

बड़ा पहचाना सा लगता है ये वीराना 
इसकी फिज़ां मेरे शहर सी है . 

3 comments:

  1. गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे
    तपती ज़मी पे आग बरसी है.


    बहुत सुन्दर रचना है मामाजी

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  2. गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे
    तपती ज़मी पे आग बरसी है
    आसुंओं पर पाबंदी जरूरी है ... बहुत सुंदर

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