न पूछ किस कदर ये आँख तरसी है
जाने किन-किन तमन्नाओं की आज बरसी है.
दिल की जलन को मिलती नहीं राहत
अब तो रातें भी दोपहर सी है.
गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे
तपती ज़मी पे आग बरसी है.
बड़ा पहचाना सा लगता है ये वीराना
इसकी फिज़ां मेरे शहर सी है .
जाने किन-किन तमन्नाओं की आज बरसी है.
दिल की जलन को मिलती नहीं राहत
अब तो रातें भी दोपहर सी है.
गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे
तपती ज़मी पे आग बरसी है.
बड़ा पहचाना सा लगता है ये वीराना
इसकी फिज़ां मेरे शहर सी है .
गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे
ReplyDeleteतपती ज़मी पे आग बरसी है.
बहुत सुन्दर रचना है मामाजी
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ReplyDeleteगालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे
ReplyDeleteतपती ज़मी पे आग बरसी है
आसुंओं पर पाबंदी जरूरी है ... बहुत सुंदर